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लेखक:

शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय

शीर्षेंदु मुखोपाध्याय

किशोर पाठकों में बेहद लोकप्रिय तथा बाङ्ला भाषा के विख्यात साहित्यकार शीर्षेंदु मुखोपाध्याय (1935) ने कई रोचक पुस्तकें लिखी हैं। आनंद पुरस्कार (1973 व 1990) के अतिरिक्त आपको मानव जमीन उपन्यास के लिए सन्‌ 1989 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। आपकी नई पुस्तकों का इंतज़ार करने में भी बड़ा मज़ा आता है। ऐसे ही मज़ेदार और रोमांचक कारनामों से भरपूर गोसाईं बगान का भूत उपन्यास ऐसी रोचक कृति है जो एक बार हाथ आई नहीं कि पाठक इसे पढ़े बिना मानेंगे नहीं। इसमें लेखक से कई सवाल पूछे गए हैं जिनमें पहला यह था कि क्या भूत सचमुच इतने परोपकारी होते हैं ? दूसरे, भूत अगर राम नाम से इतना डरते हैं जो इस उपन्यास के एक भूत का नाम निधिराम क्‍यों रखा गया ? लेखक का मानना है कि नाम में राम लगाना और राम का नाम लेना दोनों अलग-अलग बातें हैं। तीसरा सवाल यह कि साँप का जहर क्या खुद साँप पर असर करता है ? अगर करता है तो राम वैद्यजी का नाम सुनकर भूत क्‍यों भाग जाते हैं ? वह भी तो एक नाम ही है। दरअसल वैद्यजी के नाम में विशुद्ध राम है। इसके आगे-पीछे कुछ भी नहीं लगा। भूतों के मन को समझना बहुत कठिन है : कभी वे राम नाम सुनकर काँप उठते हैं तो कभी किसी राम की परवाह नहीं करते। अब अगर कोई भूत अनजाने में राम वैद्यजी का नाम ले ही ले तो हम क्या कर सकते हैं ? भूतों से भी गलती हो सकती है। मामला बड़ा पेचीदा था-इसीलिए कोई फेरबदल किए बिना यह उपन्यास सबके सामने है। अगर किसी पाठक को कहीं कोई ऐसा परोपकारी भूत मिल जाय तो सच्चाई का पता और सवालों का जवाब मिल सकता है।

अमर गोस्वामी (1945-2012) हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा उपन्यासकार थे। वे मनोरमा और गंगा जैसी देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं से लंबे समय तक जुड़े रहे तथा साहित्यिक संस्था ‘वैचारिकी’ के संस्थापक भी रहे। उन्होंने कई साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

गोसाई बागान का भूत

शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय

मूल्य: Rs. 75

मजेदार और रोमांचक कारनामों से भरपूर उपन्यास, गोसाईं बागान का भूत...   आगे...

 

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